दाँतों की बीमारियों का जो प्रकोप आजादी के बाद के समय 40 से 60 प्रतिशत था, वह आज 90 से 95 प्रतिशत तक पहुँच गया है। देश में बहुत सारे डेंटल कॉलेज खुल चुके हैं और लोगों में अवेरनेस भी पहले से ज्यादा हो गई हैं किंतु फिर भी डेंटल अवेरनेस के बेसिक एज्युकेशन की भारी कमी है। इसकी मुख्य वजह खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन होना है। डिब्बाबंद भोजन, तंबाकू का प्रचलन, पाउच और विभिन्न तरीके से तंबाकू की जो वैरायटी मिल रही है, उससे नई युवा पीढ़ी ज्यादा ग्रसित है।
मुँह के किसी भी भाग में कैंसर होता है तो इसे ओरल कैंसर कहा जाता है। मुँह में होंठ, गाल, लार ग्रंथिया, कोमल व सख्त तालू, मसूडों, टॉन्सिल, जीभ और जीभ के अंदर का हिस्सा आते हैं। इस कैंसर के होने का कारण ओरल कैविटी के भागों में कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि होती है। ओरल कैंसर होने का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है।
ओरल कैंसर के कई कारण जैसे, तम्बाकू (तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला, पान, गुटखा) व शराब का अधिक तथा मुंह की साफ-सफाई ठीक से न करना आदि हैं। इसकी पहचान के लिये डॉक्टर होठों, ओरल कैविटी, मुंह के पीछे, चेहरा और गर्दन में शारीरिक जांच कर किसी प्रकार की सूजन, धब्बे वाले टिश्यू व घाव आदि की जांच करता है।
कोई भी जख्म या अल्सर आदि मिलने पर उसकी बायोप्सी की जाती है, इसके बाद एंडोस्कोपिक जांच, इमेजिंग इन्वेस्टिगेशन्स (कम्प्यूटिड टोमोग्राफी अर्थात सीटी), मैगनेटिक रिसोनेन्स इमेजिंग (एमआरआई) और अल्ट्रासोनोग्राफी आदि की मदद से कैंसर की स्टेजेज का पता लगाया जाता है।
इसका उपचार हर मरीज के लिए अलग हो सकता है।
आखिरी स्टेज में आते हैं मरीज : शरीर की दूसरी बीमारियों के उपचार के लिए तो आदमी डॉक्टर के पास चला जाता है, लेकिन मुँह की रक्षा और इलाज के लिए अधिक गंभीरता नहीं बरती जाती। मैंने देखा है की कैंसर से ग्रसित होने के बाद ही लोग हमारे पास आते हैं। मैंने देखा है कि प्रायमरी स्टेज पर अपनी जाँच करवाने के लिए आने वाले लोगों का प्रतिशत एक या दो ही है।जो लोग तंबाकू खाते हैं, वे अपना नियमित चैकअप करवाएँ कि कहीं वे बीमारी से ग्रसित तो नहीं हो गए हैं?
मुँह के कैंसर का ऑपरेशन बहुत खर्चीला : तंबाकू खाने वालों को साफ तौर पर बताना चाहता हूँ कि मुख कैंसर का ऑपरेशन बहुत खर्चीला होता है। यहाँ तक कि एक सरकारी अस्पताल में भी इसका खर्च काफी अधिक है। इसके ऑपरेशन में एक लाख रुपए से भी ज्यादा तो लगने ही हैं क्योंकि रेडिएशन होगा। बीमारी के दूसरे खर्चे जैसे कीमो थैरेपी आदि में काफी ज्यादा पैसा खर्च होता है। यहाँ तक कि मुख कैंसर का ऑपरेशन के बाद भी यह शंका बनी रहती है कि यह बीमारी फिर से उभर नहीं आए। ऑपरेशन के बाद मरीज का चेहरा बिगड़ सकता है।
मुंह के कैंसर का जल्द पता नही चलता। इसलिए मुँह की नियमित जाँच हर 6 माह के अंतराल पर डेंटिस्ट (दाँतों के डॉक्टर ) से अवश्य करायें।
कुछ तथ्य
दुनिया में ओरल कैंसर के सबसे अधिक मामले भारत में है।
मुँह में किसी प्रकार के छाले या घाव हों जो ठीक न हो रहे हों या भर न रहे हो।
मुँह में जलन होना। मसूड़ों में सूजन,जलन या खून निकलना मुंह से बदबू आना।
बुखार, वजन कम होना या बढ़ना ,निगलने में परेशानी इसके सामान्य लक्ष्ण है।
स्टेज 0 या स्टेज 1 होने वाला ट्यूमर टिश्यूज में पूरी तरह से हमला नहीं करता जबकि स्टेज 3 या स्टेज 4 का कैंसर पूरी तरह से टिश्यूज पर हमला कर आसपास के टिश्यूज़ को भी प्रभावित करता है। ओरल कैंसर का इलाज इस बात भी निर्भर करता है कि आखिर कैंसर किस रफ्तार से फैल रहा है। ओरल कैंसर की सबसे आम प्रकार की चिकित्सा है सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी।
मुँह के किसी भी भाग में कैंसर होता है तो इसे ओरल कैंसर कहा जाता है। मुँह में होंठ, गाल, लार ग्रंथिया, कोमल व सख्त तालू, मसूडों, टॉन्सिल, जीभ और जीभ के अंदर का हिस्सा आते हैं। इस कैंसर के होने का कारण ओरल कैविटी के भागों में कोशिकाओं की अनियमित वृद्धि होती है। ओरल कैंसर होने का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है।
ओरल कैंसर के कई कारण जैसे, तम्बाकू (तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला, पान, गुटखा) व शराब का अधिक तथा मुंह की साफ-सफाई ठीक से न करना आदि हैं। इसकी पहचान के लिये डॉक्टर होठों, ओरल कैविटी, मुंह के पीछे, चेहरा और गर्दन में शारीरिक जांच कर किसी प्रकार की सूजन, धब्बे वाले टिश्यू व घाव आदि की जांच करता है।
कोई भी जख्म या अल्सर आदि मिलने पर उसकी बायोप्सी की जाती है, इसके बाद एंडोस्कोपिक जांच, इमेजिंग इन्वेस्टिगेशन्स (कम्प्यूटिड टोमोग्राफी अर्थात सीटी), मैगनेटिक रिसोनेन्स इमेजिंग (एमआरआई) और अल्ट्रासोनोग्राफी आदि की मदद से कैंसर की स्टेजेज का पता लगाया जाता है।
इसका उपचार हर मरीज के लिए अलग हो सकता है।
आखिरी स्टेज में आते हैं मरीज : शरीर की दूसरी बीमारियों के उपचार के लिए तो आदमी डॉक्टर के पास चला जाता है, लेकिन मुँह की रक्षा और इलाज के लिए अधिक गंभीरता नहीं बरती जाती। मैंने देखा है की कैंसर से ग्रसित होने के बाद ही लोग हमारे पास आते हैं। मैंने देखा है कि प्रायमरी स्टेज पर अपनी जाँच करवाने के लिए आने वाले लोगों का प्रतिशत एक या दो ही है।जो लोग तंबाकू खाते हैं, वे अपना नियमित चैकअप करवाएँ कि कहीं वे बीमारी से ग्रसित तो नहीं हो गए हैं?
मुँह के कैंसर का ऑपरेशन बहुत खर्चीला : तंबाकू खाने वालों को साफ तौर पर बताना चाहता हूँ कि मुख कैंसर का ऑपरेशन बहुत खर्चीला होता है। यहाँ तक कि एक सरकारी अस्पताल में भी इसका खर्च काफी अधिक है। इसके ऑपरेशन में एक लाख रुपए से भी ज्यादा तो लगने ही हैं क्योंकि रेडिएशन होगा। बीमारी के दूसरे खर्चे जैसे कीमो थैरेपी आदि में काफी ज्यादा पैसा खर्च होता है। यहाँ तक कि मुख कैंसर का ऑपरेशन के बाद भी यह शंका बनी रहती है कि यह बीमारी फिर से उभर नहीं आए। ऑपरेशन के बाद मरीज का चेहरा बिगड़ सकता है।
मुंह के कैंसर का जल्द पता नही चलता। इसलिए मुँह की नियमित जाँच हर 6 माह के अंतराल पर डेंटिस्ट (दाँतों के डॉक्टर ) से अवश्य करायें।
कुछ तथ्य
दुनिया में ओरल कैंसर के सबसे अधिक मामले भारत में है।
मुँह में किसी प्रकार के छाले या घाव हों जो ठीक न हो रहे हों या भर न रहे हो।
मुँह में जलन होना। मसूड़ों में सूजन,जलन या खून निकलना मुंह से बदबू आना।
बुखार, वजन कम होना या बढ़ना ,निगलने में परेशानी इसके सामान्य लक्ष्ण है।
मुंह के कैंसर का जल्द पता नही चलता। जो व्यक्ति धूम्रपान करते हैं, गुटखा खाते है, या अधिक शराब पीते है उनमें ओरल कैंसर होने की आशंकाअधिक होती है।ओरल कैंसर के करीब 90 प्रतिशत मरीज तंबाकू का सेवन करते हैं।
अधिकतर लोग तंबाकूयुक्त गुटखा मुंह में या दांतों व गाल के बीच में दबाकर रखते हैं। इसके कारण ही कैंसर का खतरा होता है। यदि मुंह के कैंसर का निदान शुरूआत में हो जाये तो इसके इलाज में आसानी होती है। आइए जानें वो कौन से लक्षण है जिससे ओरल कैंसर के होने का पता चलता हैं
शुरूआती लक्षण एवं संकेत
- बिना किसी कारण नियमित बुखार आना।
- थकान होना, सामान्य गतिविध करने से थक जाना।
- गर्दन में किसी प्रकार की गांठ का होना।
- ओरल कैंसर के कारण बिना कारण वजन का कम होता रहता है।
- मुंह में हो रहे छाले या घाव जो कि भर ना रहे हों।
- जबड़ों से रक्त का आना या जबड़ों में सूजन होना।
- मुंह का कोई ऐसा क्षेत्र जिसका रंग बदल रहा हो।
- गालों में लम्बे समय तक रहने वाली गांठ।
- बिना किसी कारण लम्बे समय तक गले में सूजन होना।
- मरीज की आवाज में बदलाव होना।
- चबाने या निगलने में परेशानी होना।
- जबड़े या होठों को घुमाने में परेशानी होना।
- अनायास ही दांतों का गिरना।
- दांत या जबड़ों के आसपास तेज दर्द होना।
- मुंह में किसी प्रकार की जलन या दर्द।
- ऐसा महसूस करना कि आपके गले में कुछ फंसा हुआ है।
- बदबूदार सांसें, जीभ के कैंसर में सांसों से बदबू आने लगती है।
- गले में खराश होना भी जीभ कैंसर का लक्षण है।
मुंह के कैंसर की शुरुआत छाले के रूप में होती है, पर यह छाला ऐसा है, जो जल्दी ठीक नहीं होता। इस दौरान गाल व मसूढ़े में सूजन व दर्द रहता है। मुंह खोलने में कठिनाई होती है। गर्दन में गांठ जैसी बनने लगती है। हर समय खराश रहती है। जीभ हिलाने पर तकलीफ होती है। आवाज साफ नहीं निकलती। कुछ रोगियों के दांत अचानक कमजोर हो जाते हैं और हिलने लगते हैं। पहली स्टेज में फाइब्रोसिस का शिकार हो जाता है। यह स्थिति प्री-कैंसर की होती है। इस स्थिति में मरीज का उपचार और निदान संभव है। फाइब्रोसिस के लक्षण यह होते हैं कि मुँह के भीतर कुछ सफेद स्पॉट आ जाते हैं या मुँह में जलन होने लगती है। शुरुआती दौर में छाला या मुंह का छोटा-मोटा अल्सर समझ कर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही वजह है कि इस कैंसर से ग्रसित 70 से 80 प्रतिशत रोगियों का इलाज अंतिम
डायग्नोसिस /निदान /जांच
- ओरल कैंसर का पता लगाने की प्रक्रिया एक सामान्य शारीरिक परीक्षण से शुरू होती है। किसी भी प्रकार की असामान्यता के चलते कई बार मुंह की जांच जरूरी हो जाती है। रूटीन चेकअप के लिए शुरुआत में डेंटिस्ट से संपर्क किया जाता है।
- डॉक्टर के लिए मुंह में किसी भी प्रकार की गांठ और उसके लक्षणों का पता लगाना आसान होता है। अगर अपनी जांच में डॉक्टर को यह पता है कि अमुक गांठ असामान्य है, तो वह आपको आगे की जांच और निदान के लिए निर्देश दे सकता है।
- दूसरा रास्ता यह है कि रोगी नाक, कान या गले के सर्जन से सम्पर्क करें। इसकी जांच सामान्यत: अस्पतालों में होती है। इस जांच से डॉक्टर को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिलती है।
- कैंसर की जांच के लिए सर्जन बायोप्सी का भी सहारा लेते हैं। इसमें असामान्य विकास वाले शरीर के भाग से एक छोटा टिश्यू लिया जाता है। इस भाग को जांच के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है। इसकी जांच के बाद ही डॉक्टर यह फैसला कर पाता है कि अमुक लक्षण कैंसर के हैं अथवा नहीं।
- ओरल कैंसर के तार किसी और प्रकार के कैंसर से भी जुड़े हो सकते हैं। इसिलए इसकी जांच के लिए लैरिंक्स/गले, वइसोफेंगस और फेफड़ों की जांच भी आवश्यक है। इस जांच के लिए फाइब्रोप्टिकस्कोप की मदद ली जाती है।
- नासिका नली में रोग का संदेह होने पर एंडोस्को़पी की जाती है। इसमें ली गई बायोप्सील को जांच के लिए पैथोलोजिस्ट के पास भेजा जाता है। अन्य टेस्ट में एक्स-रे, सीटी स्कैन और कुछ अन्य ब्लड टेस्ट शामिल हैं। इसमें इस बात की जांच की जाती है कि बीमारी किस हद तक फैल चुकी है। मरीज के शरीर पर इसका कितना दुष्प्रभाव हो चुका है। इसके साथ ही मरीज के शारीरिक स्थिति की भी जांच की जाती है।
उपचार /इलाज
स्टेज 0 या स्टेज 1 होने वाला ट्यूमर टिश्यूज में पूरी तरह से हमला नहीं करता जबकि स्टेज 3 या स्टेज 4 का कैंसर पूरी तरह से टिश्यूज पर हमला कर आसपास के टिश्यूज़ को भी प्रभावित करता है। ओरल कैंसर का इलाज इस बात भी निर्भर करता है कि आखिर कैंसर किस रफ्तार से फैल रहा है। ओरल कैंसर की सबसे आम प्रकार की चिकित्सा है सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी।
सर्जरी
कैंसर की सबसे आम प्रकार की चिकित्सा है ट्यूमर को निकालना या कैंसर प्रभावित क्षेत्र को निकालना। बहुत सी स्थितियों में सीधी सर्जरी मुंह के रास्ते की जाती है। लेकिन कुछ स्थितियों में ट्यूमर गर्दन या जबड़े तक फैल जाता है। ऐसे में सर्जरी का दायरा भी बढ़ जाता है।
जब कैंसर के सेल्स ओरल कैविटी तक या लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाते हैं, तो नेक डिसेक्शजन नामक सर्जरी की जाती है जिसमें कैंसर लिम्फ नोड्स को इस आशा में निकाल दिया जाता है कि वो शरीर के दूसरे भाग में ना फैलने पायें।
जब कैंसर के सेल्स ओरल कैविटी तक या लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाते हैं, तो नेक डिसेक्शजन नामक सर्जरी की जाती है जिसमें कैंसर लिम्फ नोड्स को इस आशा में निकाल दिया जाता है कि वो शरीर के दूसरे भाग में ना फैलने पायें।
रेडियेशन थेरेपी
रेडियेशन थेरेपी में अत्यंत शक्तिशाली किरणों की मदद से कैंसर के सेल्स को निकालने का प्रयास किया जाता है। यह छोटे ट्यूमर को निकालने का प्राथमिक उपचार है। इसे सर्जरी के बाद भी किया जा सकता है जिससे कि कैंसर प्रभावित सभी सेल्स को नष्ट कर दिया जाता है।
इस थेरेपी को दर्द, रक्तस्राव, निगलने जैसी समस्या के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यहां तक कि इसका इस्तेमाल तब भी किया जाता है जबकि यह कैंसर से बचाव ना कर सकें और इस प्रकार की चिकित्सा को पैल्यिटिव केयर भी कहते हैं।
इस थेरेपी को दर्द, रक्तस्राव, निगलने जैसी समस्या के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यहां तक कि इसका इस्तेमाल तब भी किया जाता है जबकि यह कैंसर से बचाव ना कर सकें और इस प्रकार की चिकित्सा को पैल्यिटिव केयर भी कहते हैं।
कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी में कैंसर को खत्म करने के लिए उन ड्रग्स का इस्तेमाल होता है जिससे कि सर्जरी से पहले ट्यूमर संकुचित हो जाता है। जब कैंसर प्रभावित क्षेत्र बहुत बड़ा हो जाता है कि इसकी चिकित्सा सर्जरी से नहीं की जा सकती तो ऐसे में कीमोथेरेपी के साथ रेडियेशन थेरेपी भी दी जाती है जिससे कि कैंसर की स्थिति में सुधार हो और ट्यूमर का आकार छोटा हो सके। दो सबसे आम प्रकार से कीमोथेरेपी में इस्तेमाल किये जाने वाले ड्रग्स का नाम है सिस्लैटिन और 5 फ्लोरोयूरासिल (5 एफ यू)।
- अगर कैंसर का पता शुरूआती दौर में लग जाता है तो इलाज के सफल होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ट्यूमर के पहले और दूसरे स्टेज में कैंसर 4 सेन्टीमीटर क्षेत्र से कम होता है और इस स्थिति में कैंसर लिम्फ नोड्स तक नहीं फैल पाता है। इस स्थिति में ओरल कैंसर की चिकित्सा आसानी से सर्जरी के द्वारा या रेडियेशन थेरेपी के द्वारा की जाती है।
- कैंसर की चिकित्सा के लिए आपका चिकित्सक कौन सी विधि चुनता है यह कैंसर के स्थान पर निर्भर करता है। अगर सर्जरी आपके बोलने या निगलने की स्थिति को प्रभावित नहीं करती है तो ऐसी चिकित्सा की सलाह दी जाती है। रेडियेशन के प्रभाव से मुंह के और गले के स्वस्थ टिश्यूज़ में जलन होने लगती है लेकिन यह कुछ प्रकार के मुँह कैंसर के उपचार का अच्छा विकल्प है।
- ट्यूमर के 3 और 4 स्टेज पर जो कैंसर होते हैं वह अधिक उन्नत और इसमें ट्यूमर बड़े होते हैं और यह मुंह के एक से अधिक भाग में होते हैं या यह लिम्फ नोड्स तक फैले होते हैं। इस प्रकार के कैंसर की चिकित्सा के लिए सामान्यत: अधिक व्यापक सर्जरी और रेडियेशन थेरेपी या कीमोथेरेपी या दोनों ही प्रकार की सर्जरी की जाती है।
ओरल कैंसर के लक्षणों का पता जितनी जल्दी चलेगा बीमारी की चिकित्सा उतनी ही आसानी से हो सकेगी। लगभग 90 प्रतिशत लोग जिनमें कि बीमारी का पता समय रहते लग गया है वो बीमारी का पता लगने के 5 साल बाद तक आसानी से जीवन व्यतीत करते हैं।
वो लोग जिनमें कैंसर 3 या 4 स्टेज पर होता है और उन्होंने चिकित्सा के सभी सम्भव प्रयास किये हैं उनमें जीने की सम्भावना अगले 5 साल में लगभग 20 से 50 प्रतिशत तक हो जाती है।
यहां तक कि कुछ छोटे प्रकार के कैंसर भी जिनकी चिकित्सा पूरी तरह से हो गयी है उनमें भी नये प्रकार के मुंह के, सिर के या गर्दन के कैंसर के होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए कैंसर के उपचार के बाद भी स्वयं की निगरानी करना बहुत आवश्यक है।
यहां तक कि कुछ छोटे प्रकार के कैंसर भी जिनकी चिकित्सा पूरी तरह से हो गयी है उनमें भी नये प्रकार के मुंह के, सिर के या गर्दन के कैंसर के होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए कैंसर के उपचार के बाद भी स्वयं की निगरानी करना बहुत आवश्यक है।